Sunday, July 15, 2018

सैंट्रल पार्क में ईमानदारी।। (Part I) (Based on a true incident)

ज़िन्दगी में कभी कुछ ऐसा अद्भुत हो जाता है, जो आपके पूरे नज़रिये को ही बदल देता है। बिलकुल ऐसा ही एक छोटा सा प्यारा सा क़िस्सा मेरी ज़िन्दगी में भी घटित हुआ जिसका वर्णन मैं यहाँ कर रहा हूँ।  



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"Honesty is the Best Policy"

दोस्तों हम सभी ने ये लाइन कभी न कभी सुनी होगी या पढ़ी होगी। लेकिन क्या कभी हमने इसका कारण जानने की कोशिश की ? क्यूँ  "Honesty" को बेस्ट माना जाता है, जबकि बेईमानी से  करोड़ों अरबों रूपये कमाए जा सकते हैं।  

इस लिहाज़ से तो "DISHONESTY IS THE BEST POLICY" होना चाहिए।   

लेकिन लोग नहीं मानते या मानते भी हैं तो कम से कम मुँह से नहीं कहते। इसका प्रमुख कारण है "समाज"। हमारा समाज ही है जो हमें सही और गलत की पहचान करना सिखाता है।  

येही फ़र्क हमें पशुओं से अलग करता है, हमें असल मायने में मनुष्य बनता है, वरना हमारी तरह जीवित तो पशु भी हैं।

किसी भी चीज़ को करने या रोकने का समाज को हमें बताने का मक़सद होता है कि इस चीज़ को करोगे तो "फ़ायदा" और ना किया तो "नुक्सान"। लेकिन असल में होता तो इसका उल्टा है।  बेईमानी में तो फायदा है और ईमानदारी में नुक्सान। तो फिर क्या कारण है कि हमें ऐसा बोला जाता है।  
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अब यहाँ भूमिका आती है धर्म की, ईश्वर की, पाप और पुण्य की, स्वर्ग और नर्क की।  

दोस्तों किसी भी बुरे काम को रोकने के दो उपाय होते हैं  - पहला, या तो उस आदमी को उस बुरे काम के दुष्परिणामों या नुकसानों के बारे में सचेत कर दो या दूसरा, अगर वो फिर भी ना माने तो उसे ईश्वर का डर दिखा दो। 

हो सकता है पहले उपाए से वो ना माने पर 'खुदा का ख़ौफ़' दिखाके तुम उसको रोक लोगे इसकी ज़्यादा सम्भावना है, क्युंकि हम जिस समाज में रहते हैं वहां धर्म का बड़ा बोलबाला है।  

येही वजह है कि आज भारत इन धर्मगुरुओं मौलवियों और पादरियों से भरा हुआ है। इनमें से कई तो अच्छे भी होते हैं जो आपको सही रास्ता दिखाते हैं।  

पर  ज़्यादातर  पाखंडी और झूठे हैं जिन्होंने अपनी-अपनी दुकानें खोली हुई हैं और लोगों को भगवान तक पहुंचाने का रास्ता बताने की बजाए खुदही  को भगवान के तौर पर प्रस्तुत करते हैं और भोली भाली जनता उन्हें भगवान् मानकर उनकी जेबें भरती है।  

दुःख तो इस बात का है साहब कि आप कुछ कह भी नहीं सकते क्युँकि  "अपनी-अपनी श्रद्धा है" कह कर आप को चुप करा दिया जाता है। मैं  यहाँ सभी धर्मों की बात कर रहा हूँ, कोई भी धर्म इन सब पाखंडों से अछूता नहीं रह गया।  
   
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हम इस मुद्दे पे थे की क्या वाक़ई   " Honesty is the best policy" है, क्या वाक़ई कर्म होते हैं जिनसे हमें इस दुनिया में ईश्वर द्वारा उपहार या दंड मिलता है।  क्या कोई शक्ति है जो हमें देख रही है और हमारी सारी  गतिविधियों  पे नज़र रख रही है।  क्या हमारे अच्छे बुरे कामों का हिसाब लिया जायेगा दुनिया में या दुनिया के बाद।  क्या वाक़ई भगवान्  है।  

अगर होता है तो क्या कभी किसी ने इसकी अनुभूति की।  

ये वो सारे सवाल हैं जो सभी को कहीं न कहीं तंग करते होंगे।  पर मानव का मन उसे कही सुनी बातों पे विश्वास करने को नहीं कहता।  उसे चमत्कार चाहिए , कुछ ऐसा अद्भुत जो उसे उस शक्ति के होने का एहसास कराये।  

दोस्तों, एक दिन मेरे साथ भी एक ऐसी ही अद्भुत घटना हुई जो कम से कम मेरे लिए किसी चमत्कार से कम नहीं थी और जिसने मुझे ये सोचने पे मजबूर कर दिया की कोई है जो मुझे हर पल देखरहा है और और सुन रहा है, आप भी पढ़िए और मुझे पूरी उम्मीद है की आपके जीवन पे भी ये एक छाप अवश्य छोड़ेगी।    

शाम का समय था।  मैं  हर दिन की तरह "सेंट्रल पार्क" में जॉगिंग कर रहा था।  सेंट्रल पार्क जयपुर के सभी पार्कों में से सबसे बड़ा पार्क है। यहाँ का जॉगिंग ट्रैक 4 Kilometers लम्बा है।
  
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मैंने जॉगिंग करते करते कोई 1.5 KM का फ़ासला कवर कर लिया था।

अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसकी वजह से मेरी जॉगिंग स्पीड यकायक कम हुई की यहाँ तक कि मैं रुक गया। वहाँ ट्रैक की ज़मीन पे कुछ था जिसने मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया।  एक ऐसी चीज़ जो दुनिया के हर व्यक्ति को अपनी तरफ आकर्षित करती है।  

आपका अंदाज़ा बिलकुल सही है। वहां पार्क में बाएं तरफ़ मैंने जॉगिंग ट्रैक पे कुछ हरे हरे नोट  पड़े हुए देखे। मैं वहीँ रुक गया। इतने सारे लोग वहाँ चल रहे थे लेकिन किसी की नज़र वहाँ नहीं गयी सिवाए मेरे।  खैर मैंने थोड़ा सोचा और वो नोट वहाँ से उठा लिए।  

मैंने आस पास देखा की कोई मिल जाए जो इन पैसों का दावा कर सके पर वहां तो कोई एक पल भी रुक नहीं रहा था जिससे मैं बात करता, सब चले ही जा  रहे थे।  इतनी भीड़ में कैसे पता  चले की ये किसके पैसे हैं।

  
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जयपुर एक बड़ा शहर है और शहर के बीचों बीच ये पार्क है तो सोचिये शाम के टाइम उस पार्क में कितनी भीड़ होगी।  खैर मुझे वहाँ कोई न मिला, मैंने वो पैसे अपने पास रख लिए और धीरे धीरे आगे चलने लगा।  जॉगिंग मैंने बंद कर दी।  मेरी चाल अब एक युवा की ना होकर एक वृद्ध पुरुष जैसी हो गयी थी।  

चलते चलते मेरे मन में कई विचार आ रहे थे। मुझे लगा कि येही हुआ होगा की कोई यहाँ जॉगिंग कर रहा होगा और और भागते भागते उसकी जेब से ये पैसे गिर गए होंगे। .....क्युँकि नोट हलके गीले थे तो मुझे ये ही लगा कि पसीने से नोट गीले हो गए होंगे।   

लेकिन जिसके हैं उसे ढूंढूं कैसे, यहां तो हर पल में सैकड़ों आदमी आ रहे हैं और जा रहे हैं, कोई रुक नहीं रहा सब भागे जा रहे हैं।  

बोहत ही अजीब स्थिति में फस गया था मैं।  समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूँ। 

अब यहाँ मेरे पास चार विकल्प (options) थे  


  • पहला और सबसे मुश्किल ऑप्शन तो ये की में इन हज़ारों की दौड़ती हुई भीड़ में इसके मालिक को ढूढ़ने की कोशिश करूँ।  मतलब यूँ की हर आने जाने वाले से रोक रोक कर पूछूं कि "ओ भाईसाब आपके कहीं कोई पैसे तो नहीं गिर गए " 
  • दूसरा ऑप्शन ये कि अगर इन पैसों का मालिक ना मिला तो मैं ये पैसे किसी गरीब या भिखारी को दे दूँ।  
  • तीसरा और सबसे आसान ऑप्शन ये की इन पैसों को उपरवाले का प्रसाद मानके खुद अपने पास रख लूँ और सोचूं के जो होता है अच्छे के लिए होता है।  
  • और चौथा ऑप्शन ये था की जहाँ से पैसे मिले वहाँ पर दोबारा रख दूँ। 


विकल्प कई थे पर इनमें से बैस्ट कौनसा था ये मुझे तय करना था।  क्या पता जिस किसी के भी ये पैसे हों, वो व्यक्ति बोहत ग़रीब हो और ये रक़म उसके लिए मायने रखती हो।  

दोस्तों मैंने आगे क्या किया , इन सभी विकल्पों में से कौनसा चुना , मुझे इन पैसों का मालिक मिला या नहीं और वो क्या अद्द्भुत अनुभव मेरे साथ बीता जिसने मेरी ज़िन्दगी जीने के नज़रिये को बिलकुल ही बदल कर रख दिया।  

इन सभी सवालों के जवाब आपको इस कहानी के दूसरे पार्ट में मिल जाएंगे।   

Link to the Second Part → (Click Here) सैन्ट्रल पार्क में ईमानदारी Part 2

मेरी ये कहानी और राइटिंग स्टाइल आपको कैसा लगा मुझे कमैंट्स में ज़रूर बताएं।  इसका दूसरा भाग भी ज़रूर पढ़ियेगा जिसका लिंक मैंने ऊपर दिया है ।  धन्यवाद। 

 


70 comments:

  1. Wah bhai bhot sahi likha h but eagerly waiting for 2nd part. Keep up the good work dude :)

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    1. बोहत बोहत शुक्रिया भाई आपका !
      Your comment is the first one and very motivating 😊

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  2. Very awesome adeeb. Your thinking and writing skills is infinity awesome . I proud of you.

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  3. बहुत खूब अदीब ...
    ऐसे ही लिखते रहो 👍

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. Kya bath hai bhai...Keep it up 👍

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    1. Thanks Brother from different mother !!!

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  6. Nice adeeb.....This is very interesting story and how you explained it was too good👍

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  7. Shandar .. waiting for 2nd part

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    1. Boht boht shukriya.... Will upload in some days !

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  8. Very well written.
    बड़ी खूबसूरती से आपने मानवीय भावो को सहेंझा है।
    आप ऐसे ही आगे बढ़े। और सुंदर रचनाएँ अपने ब्लॉग द्वारा प्रकट करें।

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    1. आपकी इस प्रशंसा का बोहत बोहत आभार । कोशिश करूंगा आगे भी आपको कुछ अच्छी रचनाएँ अपने ब्लॉग द्वारा दे पाऊं ।

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  9. Adeeb part 2 ka intzaar h...bahut achha hai

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  10. Very Well Written Adeeb bhaiya. Good job.

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  11. Awesome piece of narration kya baat 😀

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  12. Bahut badhiya Bhai ...wo pese mere the ....paytm Kar dena :-p

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  13. the writing is mind blowing super the way in which you explain is fantastic

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  14. Bahut khoob.. Waiting for part 2

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  15. Well done...all the best

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  16. Thankyou my friend..... second part is out .... here is the link https://akspeak.blogspot.com/2018/07/part-ii.html

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  17. Such he thoda let logo tk pochega pr jagrukta zaroor hogi insha Allah

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  18. Masha Allah
    Allah aaopko bahut qamyabi ataa kare....
    Aameen

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  19. Masha Allah
    Allah aaopko bahut qamyabi ataa kare....
    Aameen

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  20. Thank you for your appreciation !

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