Monday, July 23, 2018

सैंट्रल पार्क में ईमानदारी। (Part II) (कहानी का सैकंड हाफ़)

नमस्कार दोस्तों। ये अंश मेरी कहानी "सैंट्रल पार्क में ईमानदारी" का "पार्ट 2" है
मेरा आपसे विशेष आग्रह है कि इस कहानी को अंत तक पढ़ें, ताकि आप मेरे इस अनुभव की असली रूह को समझ पाएं।  💖💖

दोस्तों अगर आपने मेरी कहानी का "पार्ट  1" नहीं पढ़ा है तो मैं इसका लिंक नीचे दे रहा हूँ 
Link to Part 1 (Click Here) सैंट्रल पार्क में ईमानदारी, Part 1

Children Multicolored Hand Paint



तो चलिए बढ़ते हैं आगे की कहानी की तरफ़.....

मैं अब विचार कर रहा था की इन चारों विकल्पों में से कौनसा चुनूं। लेकिन मुझे यहाँ विकल्प की नहीं बल्कि नतीजे की फ़िक्र थी। मैं बस ये ही चाहता था की जिसके भी पैसे हों उस तक पोहंच जाएँ।
अब दोस्तों यहां आती है आपकी आस्था, आपका उपरवाले पर विश्वास। क्यूंकि कहते हैं कि जब सारे दरवाज़े बंद हो जाएँ तब भगवान् का द्वार खुला होता है। अतः जो द्वार खुला है उसी में प्रवेश कीजिये और अपना रोना रोईए।
भगवान् , ईश्वर , गॉड , अल्लाह.... कुछ भी कह लो, क्या फ़र्क पड़ता है। सब एक ही तो हैं। सब उस परम शक्ति के अलग अलग नाम हैं। असली चीज़ है आस्था... विश्वास। 👼

अब यहां जो मेरी स्थिति थी वो कुछ ऐसी कि मेरे जेब में पैसे थेमाथे पर चिंता और मन में कई विचार। क्या करूँ ये समझ से परे था। मैंने अब कुछ ऐसा किया जो आम ज़िन्दगी के अनुसार महज़ किताबी बातें हैंया यूँ कहिये की प्रैक्टिकल नहीं है। 
.....आज की scientific दुनिया में जहां पर हर चीज़ के लिए "लॉजिक" और "प्रूफ़" चाहिए वहाँ अध्यात्म की value अब कुछ रह नहीं गयी या बोहत कम बची है।

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मैंने उस स्थिति में सिर्फ एक काम किया।  वो ये, कि मैंने अपने मन में बोहत ही सच्ची नीयत के साथ एक बात सोची।  ये सोचते ही मेरा बोझ मानो आधे से भी कम हो गया।  

मैंने मन में अल्लाह से बस इतना बोला कि , "ये पैसे तूने मुझे दिलवाये , अब मैं ये तो नहीं जानता कैसे, पर अब तू ही है जो मुझे इसके असली मालिक तक पहुंचाएगा, जिसकी मुझे पूरी उम्मीद है और मैं इसके लिए प्रयास करूँगा "....। ये सोचके मैं आगे चलने लगा।
चिंता अभी भी थी पर पहले जितनी नहीं क्यूंकि अब ज़िम्मेदारी मैंने उसे दे दी जो कभी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ता।
चलते चलते जो कुछ याद था, जैसे कुछ आयतें, प्राथनाएं वग़ैरह....... मन में दोहराने लगा।ये भी विचार आ रहे थे कि यदि पैसा इसके मालिक तक नहीं पोहंचा पाया तो किसी गरीब को दे दूंगा, क्यूंकि जिस पैसे के लिए मैंने मैहनत नहीं की, वो पैसा मेरे किस काम का।
आधा ट्रैक मैंने ख़तम कर लिया था।  रास्ते में हज़ारों लोग मिल रहे थे, किस्से पूछूं किस्से नहीं समझ नहीं आ रहा था।
अब दोस्तों वो पल आता है जो मेरी इस कहानी लिखने का मुख्य कारण है। आप भी बोर ना हों इसीलिए जल्दी मुद्दे पे आता हूँ।



लोग दौड़ रहे थे या चल रहे थे। बाकी सभी लोगों की तरह 2 लोग ऐसे थे जो मेरी ही साइड से आपस में बातें करते-करते चल रहे थे   उन दो में से एक व्यक्ति ऐसा था जिसकी लम्बाई एवरेज थी और शरीर थोड़ा सा भारी।
पता नहीं क्यों पर मेरे दिमाग में ये thought आया कि, "क्यों ना इनसे पूछकर देखा जाये"  थॉट क्यों आया , किस वजह से आया , सबको छोड़ के इसी व्यक्ति के लिए क्यों आया.... ये सब मुझे नहीं पता।  बस आया।।।
हालांकि जहां मुझे पैसे मिले और जहाँ मैं अब था वो जगह उससे काफी दूर थी।    

सोचने की हिम्मत जुटा ही रहा था की फिर चंचल मन ने कहा  कि"क्या फ़ायदा, ये तो अँधेरे में तीर चलने जैसा है।....  जहां देखो वहाँ लोग ही लोग फिर सबको छोड़के इनसे ही पूछने का क्या लॉजिक।".... अतः मैं आगे चल पड़ा।
स्पीड से walk करता हुआ मैं उन दोनों से आगे निकल गया।  अब में उनसे आगे वाक कर रहा था पर पता नहीं क्यूँ बेचैनी दामन छुड़ाने को तैयार ना थी।  एक मछली पानी से निकलके जैसे छटपटाती है उसी तरह मेरी अंतर-आत्मा भी छटपटा रही थी।  एक बार फिर मन से कुछ आवाज़ आयी.... थोड़ी धीमी.... पर इस बार दुगने आत्मविश्वास से 
दोस्तों कभी आपने पानी में भागने की कोशिश करी है ? ये एक ऐसा प्रयास है जो व्यर्थ का है !!!...चूँकि मैं ख़ुद  एक तैराक हूँ तो मुझे पता है।  पानी के अंदर आप नहीं भाग सकते चाहे कितना भी ज़ोर लगा लो।  बिलकुल वैसी ही दशा मैं महसूस कर रहा था।  
फ़र्क बस इतना था कि इस बार मुझे पानी नहीं बल्कि मन में उमड़ती हुई आवाज़ों की कैफियत रोक रही थी.... कुछ कहना चाहती थी..... अपनी तरफ बुला रही थी।


मैंने आख़िर सोचा, "यार,अगर इरादा कर ही लिया है तो एक बार पूछने में क्या हर्ज़ है , ज़यादा से ज़्यादा ये होगा की वो मना कर देगा।"....  फिर दोस्तों मैं पीछे मुड़ा , दोबारा।  और उन दो व्यक्तयों में से उस एवरेज हाइट वाले  व्यक्ति की तरफ चलने लगा।

मैंने just उसके सामने आकर उसका रास्ता रोक लिया..... और बड़े प्रेम से पूछा।

"एक्सक्यूज़्मी"

वो बोला, "जी"

 मैं बोला, "सर, एक बात बताइये, यहाँ पीछे आपका कुछ गिर तो नहीं गया ?"

अब दोस्तों यहाँ असली खेल है।  उसने जो मुझे जवाब दिया वो सुनके मेरे रोंगटे खड़े हो गए।  ये एक ऐसा जवाब था जिसकी मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी। एक ऐसा जवाब जिसने मुझे लाजवाब  कर दिया।  लेकिन दुनिया इसी का नाम है , कभी भी कुछ भी हो सकता है।

मेरे पूछने पर उसने मुझे अपने हाथ से तीन उँगलियों  दिखाकर इशारा करते हुए  exactly उतनी ही रक़म बताई जो मुझे वहां पड़ी हुई मिली थी

 यूँ मानो ये सुनकर मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना ना रहा हो।  इतनी ख़ुशी कि मेरी जुबां ही मेरे लव्ज़ों को ज़ाहिर करने में असमर्थ हो गयी थी।  मैंने कोशिश करके उससे पुछा कि कहाँ गिरे तो जवाब मिला "सर जेब से मोबाइल निकालते वक़्त गिर गए थे शायद पीछे कहीं ...!"



मैंने उसे उसकी अमानत लौटा दी, उसने मुस्कुराकर उसे स्वीकार किया और आगे चला गया।  उसने मेरा नाम तक नहीं पूछा।... ख़ैर उसका मुझे मलाल नहीं क्यूंकि मैं ख़ुश था , बोहत ख़ुश।  ऐसा लगा मानो जैसे किसी बोहत बड़े इम्तेहान में न केवल पास हुआ बल्कि फर्स्ट आ गया।  

एक संतुष्टि..... एक पूर्ती का एहसास, जो लाखों करोड़ों रूपये देकर भी ख़रीदा नहीं जा सकता।

उस समय सिवाए मेरे, किसी को नहीं पता था की किस शिद्दत से मेरे दिल में खुशियों का समंदर गोते खा रहा है। मैंने उस परम शक्ति का तहे दिल से शुक्रिया अदा किया।  बेशक, उसकी शान निराली है।

दोस्तों कहानी ख़त्म हो गयी।  अब आप या तो जा सकते हैं, या महज़ 2 minute और देकर आगे का पढ़ सकते हैं, जो कहानी की असली रूह है.... कहानी का निचोड़  

निष्कर्ष / Conclusion .....

अब हम इस घटना से कई निष्कर्ष निकाल सकते हैं।  हर किसी का इस कहानी को देखने का अपना अलग नज़रिया हो सकता है।  कोई ग़लत नहीं है। सब अपनी जगह  सही हैं। कई लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो इसे महज़ एक इत्तेफ़ाक़ समझें।  

ख़ैर जहाँ तक मैं समझ पाया वो ये, कि आपको चुना जाता है, भगवान् द्वारा या प्रकृति द्वारा.... और चुनकर कठिन परिस्थितियों में रखकर आज़माया जाता है।

कुछ लोग इनमें हार जाते हैं और ईश्वर से दूर हो जाते हैं... और कुछ लोग इनमें पास होकर अपने कर्मों से ईश्वर के साथ एक तार जोड़ लेते हैं.... एक बोहत ही मज़बूत आध्यात्मिक तार।

संभव है की आपके साथ भी कभी ना कभी प्रकृति ने कुछ ऐसा या इस जैसा ही इम्तेहान लिया हो।  आपने उस में क्या किया आप बेहतर जानें पर मुझे जो मेरी मंज़िल मिली उससे मैं बोहत ही संतुष्ट हूँ।  आगे भी कोशिश करूँगा की इसी पथ पर चल सकूँ और ऐसे अलौकिक अनुभव मेरे साथ होते रहें।


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एक दूसरा महत्वपूर्ण नज़रिया ये भी निकलके आता है की यदि आपकी नीयत सच्ची हो तो रास्ते खुद बा खुद खुल जाते हैं।  बोहत ही सरल लाइन है लेकिन उतना ही गहरा भावार्थ।  इसका मतलब ये की आपके मन के विचार और नीयत ही ये तय करती है की आपके साथ क्या होने वाला है।

इस कहानी में शुरुआत से ही मेरी दो टूक येही नीयत थी कि मुझे पैसे लौटाने हैं।  क्षण भर के लिए भी मैंने ये नहीं सोचा की पैसे ख़ुद रख लूँ।

येही वो नीयत थी जिसकी वजह से परमात्मा ने मेरे लिए रस्ते खोले और मेरा काम आसानी से बन गया। ईश्वर जानता था की की एक आदमी से पूछकर और "ना" सुनकर ये आशा छोड़ देगा।....  इसीलिए उसने मेरे इस असंभव कार्य को बोहत ही सरल बनाते हुए पहले ही उस व्यक्ति से मुझे मिला दिया जिसकी ये राशि थी।

दरसल वो आपकी नीयत देखता है आपकी शिद्दत देखता है।  नीयत की कसौटी पे मेरा भाव खरा उतरा तो उतने ही अभूतपूर्व नतीजे भी मिले।

अगर मेरी नीयत में ज़रा भी खोट होती तो ना तो मेरे साथ ऐसा कुछ होता और ना आपको ये कहानी सुनने मिलती।

दोस्तों मैं जाने कितने लोगो को जानता हूँ जो दूसरों का धन या संपत्ति उधार लिए बैठे हैं या खा गए हैं।   जब भी लौटाने की बात आती है तो ये लोग येही कहते हैं कि, "जब हमारे पास होंगे तब लौटाएंगे"....!!! दरसल उनकी नीयत ने ही उनके पैसे लौटाने के सारे द्वार बंद कर दिए हैं।  वे हमेशा ही पैसे ना होने का रोना रोते रहेंगे।

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ये याद रखिये कि आप जितना देंगे उसका 4 गुना देर सवेर दोबारा आप ही को कहीं ना कहीं से वापिस मिल जाएगा। 

नीयत बदलो, किस्मत भी बदलेगी..... हाँ हो सकता है फिर भी कोई द्वार ना खुले लेकिन ग़ौर से देखोगे तो एक-आद खिड़की ज़रूर खुली मिलेगी।  वो कहते हैं ना , "किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने की कोशिश में लग जाती है।"...... सही कहते हैं।।। :-)

दोस्तों आपको मेरी ये कहानी और राइटिंग स्टाइल कैसा लगा मुझे कमैंट्स सेक्शन में ज़रूर बताएं। आपका बोहत बोहत धन्यवाद। 🙏










29 comments:

  1. Your writing is inspiring..keep it up��

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    1. Thank you Payal for the first comment, i am glad you liked my writing, and you are an inspiration too my friend !

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  2. Literally it’s a story which gives people a message of humanity, faith, happiness and a good mannerism. Words, ideology, thoughts everything that u put into it is great. Keep going bro ✌🏻👍🏻

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    1. Wowww, thanks a lot for your sweet and kind words brother... i m really glad you liked my work and your words of motivation will further instigate me to write more ! God bless you !

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  3. I don't know how people other than me will see this story,,, but I would say just "it's life" we should see life in a same way you have described here. All the lesson of life you have taught here!! Nice job

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    1. Thanks a lot Deepak for the feedback.... yeah you are right... it is life which is unpredictable at times and is the biggest teacher !

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  4. Adeeb bhai kya likha h dubo diya antaraatma me

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    1. हाहा, आपका बोहत बोहत द्यन्यवाद विकास भाई :)

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  5. बहुत ही रोचक अंदाज में लिखा है ... मजा आ गया... लिखो... खूब लिखो.. लिखते रहो.. शुभकामनाएं

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    1. आपका बोहत बोहत धन्यवाद सर.... आप गुणीजन की राय बोहत महत्त्व रखती है। बिलकुल इंशाल्लाह लिखते रहेंगे आपका आशीर्वाद रहा तो। :)

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  6. Bahut khoob
    Jo sbse main point h is story ka wo h NIYAT
    Agr apki niyat sahi h to apko kamyab hone se koi nhi rok skta qki nek niyat walo k sath Allah hota h....

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    1. Beshak..... Thanks a lot brother... Allah tala hum sab ki achhi neeyat barqaraar rakhe !

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  7. Bhut khub sir... last lines “नीयत बदलो, किस्मत भी बदलेगी..... हाँ हो सकता है फिर भी कोई द्वार ना खुले लेकिन ग़ौर से देखोगे तो एक-आद खिड़की ज़रूर खुली मिलेगी” dil chu gyi

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    1. Mere dil se nikli hui baat aapke dil tak pohchi...bus meri koshish safal hui... Thankyou very much sir ! :-)

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  8. Very very inspiring. Good luck. Good bless you.

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  9. My friend Hamza Khan told me about your blog. It's really good. Keep writing.

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    1. Yeah Hamza is my cousin. Thanks for the appreciation Ashish.

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  10. Staggering incidence bro. Nothing like serving the mankind and nature. Thanks for sharing. Keep writing:)

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    1. Thanks Jyotir mere bhai and yeah will do that :-)

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